Monday, June 21, 2010

कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है,



कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है,
मगर धरती की बेचेनी को बस बादल समझता है.
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ, तू मुझसे दूर कैसी है,
यह तेरा दील समझता है या मेरा दील समझता है.

मोहब्बत एक एहससों की पावन सी कहानी है,
कभी कबीरा दीवाना था, कभी मीरा दीवानी है.
यहाँ सब लोग कहते हैं मेरी आँखों में आनसूँ हैं,
जो तू समझे तो मोती है, जो ना समझे तो पानी है.

समंदर पीर का अंदर है लेकीन रो नहीं सकता,
यह आनसूँ प्यार का मोती है, इसको खो नहीं सकता.
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना, मगर सुन ले,
जो मेरा हो नहीं पाया, वो तेरा हो नहीं सकता.

भ्रमर कोई कुमुदिनी पर मचल बैठा तो हंगंगामा,
हुमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगंगामा.
अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का,
मैं किससे को हक़ीक़त में बदल बैठा तो हंगंगामा

बहोट टूटा बहोट बिखरा थपेड़े सेह नही पाया,
ह्वाओ के ईसरो पर मगर मे बह नही पाया.
अधूरा अनसुना ही रह गया ये प्यार का कीस्सा,
कभी मे कह नही पाया कभी तुम सुन नही पाई।

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